Thursday, July 3, 2025

उपसंहार: वो चिट्ठियाँ जो कभी भेजी नहीं गईं

उपसंहार: वो चिट्ठियाँ जो कभी भेजी नहीं गईं

मुंबई में देर से सर्दी थी
ऐसी सर्दी जो ठहरती नहीं,
बस एक नरम हवा की तरह गुज़र जाती है
किसी याद जैसी लगती थी
मौसम जैसी नहीं,
यादों जैसी

आरव अपने अपार्टमेंट की खिड़की के पास बैठा था
उसके हाथों में गर्म काली चाय का कप था

नीचे शहर अपने धीमे सुरों में ज़िंदा था
कहीं दूर हॉर्न की आवाज़,
किसी ट्रेन की हल्की गूंज,
और पास की गली में भौंकता हुआ कोई कुत्ता

डायरी उसके पास आए छह महीने हो चुके थे

और आज रात
बिना किसी खास वजह के
उसने उसे एक चिट्ठी लिखने का फ़ैसला किया

भेजने के लिए नहीं

बस लिखने के लिए

बस ये याद दिलाने के लिए कि वो अब भी लिख सकता है

मीरा,

मुझे नहीं पता तुम कहाँ हो
शायद समुंदर के पास
शायद किसी और भी शांत जगह पर

मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ
मैंने सब कुछ पढ़ा

एक बार में नहीं
कुछ पन्नों के लिए ख़ामोशी चाहिए थी
कुछ के लिए संगीत
और एक पन्ने के लिए बारिश

तुमने अपनी पहली प्रविष्टि में लिखा था
कुछ कहानियाँ कभी ज़ोर से नहीं कही जातीं

शायद हमारी कहानी भी ऐसी ही थी

शायद उसे सबके लिए नहीं,
बस हमारे बीच चुपचाप रहने के लिए लिखा गया था

अब मैं फिर से लिख रहा हूँ
हमारे बारे में नहीं

ऐसी कहानियाँ
जो थोड़ी बिखरी हुई हैं,
हल्की हैं,
और सच्ची हैं

किताबों की दुकान में एक लड़की है
जो कभी किसी सवाल को दोहराती नहीं

कभी-कभी, यही सबसे बड़ी मेहरबानी होती है

मैं उम्मीद करता हूँ
तुम भी लिख रही हो

मेरे बारे में नहीं
अपने बारे में

उन चीज़ों के बारे में
जो किसी चीज़ के खत्म होने के बाद उगती हैं

उस रोशनी के बारे में
जो सुबह में छुपी होती है
जब तुम रात को ढोना बंद कर देती हो

मैं हमें याद करता नहीं
मैं हमें याद रखता हूँ
और अब बस इतना काफ़ी है

आरव

उसने चिट्ठी को बड़े सहेज कर मोड़ा,
और एक किताब के बीच रख दिया
एक ऐसी किताब,
जिसे वो हमेशा पूरा करना चाहता था

छुपाने के लिए नहीं

बस उसे वहीं रखने के लिए
जहाँ वो अब ठीक महसूस करती थी
उन अधूरे पलों में,
जिन्हें अब किसी जवाब की ज़रूरत नहीं थी

बाहर शहर साँस ले रहा था

अंदर, आरव भी

और कहीं दूर
शायद किसी तट पर,
जहाँ हवा मुलायम और गर्म थी
मीरा ने अपने पन्ने से नज़र उठाई

ऐसा लगा
जैसे कुछ बहुत हल्का और अनदेखा
अभी-अभी उसके पास से गुज़रा हो

वो मुस्कराई

किसी याद की वजह से नहीं

बल्कि इसलिए कि
अब उसे याद रखने की ज़रूरत ही नहीं थी

समाप्त
(THE END)

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