Thursday, July 3, 2025

अध्याय बारह: धागे का हिस्सा

अध्याय बारह: धागे का हिस्सा

डायरी प्रविष्टि 4 अप्रैल, रात 10:03

मुझे लगता है अब मैं समझने लगी हूँ
जब लोग कहते हैं कि वक़्त जख्म नहीं भरता,
बस उन्हें थोड़ा नरम कर देता है

दर्द अब भी है
पर अब वो अचानक नहीं आता
अब वो मेरे साथ चलता है
चुपचाप
परिचित-सा
जैसे अब उसे अपनी जगह पता है

मैं आज झील के पास वाले कैफ़े में बैठी थी,
और पहली बार बिना तुम्हारे बारे में सोचे चाय मँगवाई
पहले ये नामुमकिन लगता था

पर फिर एक गाना बजा
कुछ नरम-सा,
बैकग्राउंड में गिटार और वायलिन की हल्की-सी आवाज़

और बस एक पल के लिए,
मेरे हाथ कप के चारों ओर थम गए

मैं फिर उस ठंडी सुबह में लौट गई थी
तुम अपनी नोटबुक में कुछ लिख रहे थे,
सोचों में खोए हुए
और मैं ऐसा दिखा रही थी जैसे मैंने तुम्हें देखा ही नहीं

लेकिन वो पल गुज़र गया

मैंने उसे थामे नहीं रखा

मैंने उसे जाने दिया

और मुझे लगता है,
यही इस बात की निशानी है कि मैं बदल रही हूँ

मैं और नैना कैफ़े में घंटों बैठीं रहीं
वो सामने वाली सड़क पर एक परफ़ॉर्मर का स्केच बना रही थी
एक आदमी जिसके हाथों में ढेरों कंगन थे
और जिसकी ताल का कोई ठिकाना नहीं था

हम बहुत ज़ोर से हँसीं
एक बेहूदा-सी केक की स्लाइस बाँटी
और कुछ देर के लिए,
ऐसा लगा जैसे मैंने कभी उदासी के बारे में लिखा ही नहीं

ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें अब याद नहीं करती

बस शायद अब मैं तुम्हारा इंतज़ार नहीं करती

और ये एहसास...
सच लगता है

ये मैं जैसी हूँ, वैसा लगता है

कल मैं पुरानी लाइब्रेरी जाऊँगी
वहीं खिड़की के पास बैठूँगी
जहाँ हम एक-दूसरे को देखा करते थे,
पर कभी कुछ कहा नहीं

मैं अपनी डायरी साथ ले जाऊँगी

शायद आज कुछ ऐसा लिखूँ
जिसमें तुम्हारा नाम ना हो

मुझे तुम्हें मिटाना नहीं है
आगे बढ़ने के लिए

तुम हमेशा मेरी कहानी का हिस्सा रहोगे

पर अब ज़रूरी नहीं
कि तुम पूरी तस्वीर बनो

मीरा

आरव ने तुरंत डायरी बंद नहीं की

उसने उसे खुला रहने दिया डेस्क पर,
मीरा की लिखावट पन्नों पर फैली हुई,
जैसे कोई निजी चीज़ सामने गई हो

उसने उन शब्दों को दोबारा पढ़ा
इसलिए नहीं कि वो उन्हें समझ नहीं पाया था,
बल्कि इसलिए कि उसे कुछ और सेकंड चाहिए थे
उनके साथ रहने के लिए

उसने अपनी हथेली सीने पर रखी,
जैसे किसी आने वाले एहसास को
शांत करना चाहता हो
जो अभी पूरी तरह पहुँचा नहीं था,
पर रास्ते में था

तो यही होता है जाने देना

ना गुस्से के साथ
ना ख़ामोशी से

बस एक धीमा-सा मोड़
एक नरम-सा बदलाव
एक नई दिशा की ओर

मीरा अब सीख रही थी
कि अकेले भी पूरा कैसे महसूस किया जाता है

और वो इस बात पर गर्व महसूस कर रहा था
सच में

फिर भी

उसने अपनी कुर्सी थोड़ी घुमाई
और डेस्क के उस किनारे को देखा
जहाँ मीरा की चोटी का एक पुराना स्केच
एक पुराने क्लास शेड्यूल के नीचे दबा हुआ था

उसने उसे इतने साल तक संभाल कर रखने की योजना नहीं बनाई थी

वो बस रह गया था

उसने स्केच उठाया
ध्यान से मोड़ा
और एक पुराने आर्किटेक्चर जर्नल के पन्नों के बीच रख दिया

ना फेंका गया
ना भुलाया गया

बस वहीं लौटा दिया गया
जहाँ वो हमेशा से था
उस इंसान की कहानी में
जो आरव कभी हुआ करता था

वो कुर्सी पर थोड़ा पीछे झुका
और एक धीमी साँस छोड़ी

बाहर, स्ट्रीट लाइट हल्के से झपक रही थी
दो छात्र खिड़की के पास से गुज़रे,
हँसते हुए,
उनकी आवाज़ें धीमे-धीमे दूर होती गईं

आरव ने फिर मीरा के शब्दों को याद किया

"तुम हमेशा धागे का हिस्सा रहोगे
लेकिन ज़रूरी नहीं कि तुम पूरी बुनावट बनो"

इसमें थोड़ा दर्द था
पर साथ ही
एक कोमलता भी थी

कुछ ऐसा
जिसकी उसे ज़रूरत थी,
बिना उसे खुद पता हो

शायद सच्चा प्यार ऐसा ही होता है
जैसे सही ढंग से खत्म होना

उसकी शुरुआत में नहीं
बल्कि उस तरह में
जिससे वो धीरे-धीरे चला जाता है

आरव ने एक नई नोटबुक उठाई

ना वो जिसमें फ़्लोर प्लान थे
ना वो जिसमें अधूरी कविताएँ थीं

एक बिल्कुल कोरी डायरी

उसे नहीं पता था कि वो क्या लिखेगा

पर पहली बार,
काफ़ी वक़्त बाद,
उसे ऐसा नहीं लग रहा था
कि वो मीरा के बारे में लिखना चाहता है

उसे बस...
कुछ लिखने का मन था

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