Thursday, July 3, 2025

अध्याय चौदह: बारिश की तरह

अध्याय चौदह: बारिश की तरह

डायरी प्रविष्टि 12 अप्रैल, शाम 6:42 बजे

प्रिय आरव,
तुम ये एक दिन ज़रूर पढ़ोगे
शायद तुमने पहले ही पढ़ लिया है

मैंने ये पन्ने इसलिए नहीं लिखे कि मुझे कोई जवाब चाहिए था
मैंने इसलिए लिखा क्योंकि हमारे बीच जो बातें कभी कही नहीं गईं,
उन्हें ढोने का और कोई तरीका मुझे नहीं आता था
कुछ कहानियों को किसी इंसान से ज़्यादा,
काग़ज़ की ज़रूरत होती है

लेकिन अब मुझे पता है
कब रुकना है

मैं सोचती थी कि इसका अंत
किसी बड़े से एहसास के साथ होगा
कोई एक सच्चाई,
कोई एक आख़िरी लाइन
जो इन सबको कोई मतलब दे देगी

पर अंत उससे कहीं ज़्यादा शांत होता है

ये ऐसे ख़त्म होता है
मैं एक खिड़की के पास बैठी हूँ,
सूरज ढलने वाला है,
हवा थमी हुई है,
और पहली बार मैं किसी का इंतज़ार नहीं कर रही

कुछ खत्म हो जाने के बाद
ग़ुस्से के बिना
सिर्फ़ समय और दूरी से
शांति मिलती है
एक अजीब लेकिन सच्ची शांति

तुमने एक बार मुझसे पूछा था
एक ऐसे पल में
जिसे शायद तुमने याद भी नहीं रखा होगा
कि मैं उस वक़्त क्या सोच रही थी

मैंने जवाब नहीं दिया था

पर अब दूँगी

मैं सोच रही थी
"काश तुम मुझे सच में देख पाते
सिर्फ़ उस रूप में नहीं
जिसे तुमने सराहा
ही उस शांत लड़की के रूप में
जो हमेशा कोने में बैठी रहती थी
बस मुझे जैसी मैं हूँ"

तुमने कभी नहीं देखा

और अब लगता है
ठीक है

क्योंकि अब मैं खुद को देख पाती हूँ

शायद यही सबसे ज़्यादा ज़रूरी था

तो ये है
इस डायरी की आख़िरी लाइन

इसलिए नहीं कि कहने के लिए कुछ बचा नहीं

बल्कि इसलिए कि
अब मैं अतीत में जीना छोड़ चुकी हूँ

अपना ख़्याल रखना, आरव

इसे पछतावे की तरह मत पढ़ना

इसे बारिश की तरह पढ़ना

मीरा

आरव खिड़की के पास खड़ा था,
मीरा की डायरी उसके हाथ में खुली थी

उसे उम्मीद थी कि कुछ और मिलेगा
शायद कोई आख़िरी वाक्य,
जिसमें एक रास्ता खुला रह जाए
कोई संकेत,
कि वो अब भी उसके पास लौट सकता है

पर ये वैसा नहीं था

मीरा के आख़िरी शब्द कोई निमंत्रण नहीं थे

ये एक शांत विदा थी

एक जाने देना

"इसे पछतावे की तरह मत पढ़ना
इसे बारिश की तरह पढ़ना"

उसने ये पंक्ति दोबारा पढ़ी

और फिर से

जब तक वो मीरा की नहीं लगने लगी
बल्कि ऐसी लगने लगी
जैसे ये सोच उसके अपने मन में थी,
पर उसने कभी ज़ुबान नहीं दी

वो रोया नहीं

उसे लगा था कि वो रोएगा

लेकिन कुछ और हुआ

वो स्थिर महसूस करने लगा

जैसे बारिश के ठीक बाद की हवा

ज़मीन अब भी भीगी हुई
उसकी महक अब भी ताज़ा
पर अब कुछ गिर नहीं रहा

उसने डायरी को उस दराज़ में रखा
जहाँ वो वे चीज़ें रखता था
जिनके साथ क्या करना है
वो उसे अब तक समझ नहीं आया था

कुछ पुराने ख़त,
जो कभी भेजे नहीं गए,
कुछ तस्वीरें
जो पहले उसकी डेस्क के ऊपर लगी रहती थीं,
और एक बुकमार्क
जो मीरा ने कभी उसे एक नॉवेल के साथ दिया था

उसने दराज़ पूरी तरह बंद नहीं की

कुछ चीज़ों को पूरी तरह बंद करना ज़रूरी नहीं होता

वो किचन में गया
और खुद के लिए एक कप ब्लैक टी बनाई बिना चीनी के

अपार्टमेंट एकदम शांत था
बस चम्मच के कप से टकराने की हल्की आवाज़

बाहर, शहर धीरे-धीरे चल रहा था
ना तेज़
ना ख़ामोश
बस जैसा है, वैसा

वो चाय लेकर बालकनी में गया

गमले बेतरतीब और थोड़ा बढ़े हुए थे
उसने सोचा
"पानी देना है शायद कल"

हवा नम थी,
लेकिन भारी नहीं
आसमान थोड़ा फीका लग रहा था,
जैसे दुनिया ने अभी-अभी रोना ख़त्म किया हो
और अब थोड़ा आराम कर रही हो

वो अपनी पुरानी कुर्सी पर बैठ गया
पाँव ऊपर कर लिए
चाय की भाप को
शाम की हवा में उठते देखा

ना फोन
ना किताब
ना सोचने की कोई जल्दी

वो बस बैठा रहा

खुला हुआ
शांत
स्थिर

वो इस सब से अभी पूरी तरह उबर नहीं पाया था

लेकिन वो यहाँ था

और इस वक़्त के लिए
यही काफ़ी था

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