Thursday, July 3, 2025

अध्याय पाँच: ठहराव की धार

अध्याय पाँच: ठहराव की धार

वो अब भी उसके बारे में सोचता था
उसकी चुप्पी के बारे में
उसकी आँखों के बारे में, जब वो जवाब देने का फैसला करती थी
उस तरह से, जैसे वो हर बार कुछ कहने के करीब आकर रुक जाती थी

उस सुबह आरव स्टूडियो थोड़ा जल्दी पहुँच गया
कमरा शांत था
हमेशा की तरह टर्पेंटाइन की हल्की गंध हवा में थी
ऊँची खिड़कियों से आती धूप ने सब कुछ थोड़ा ज़्यादा साफ़ दिखा दिया था, जितना वो असल में था

उसने अपने टूल्स धीरे-धीरे निकाले
टी-स्क्वायर, स्केचपैड, पेंसिलें
हर चीज़ को उसने ध्यान से रखा, जैसे वो ध्यान में था, जबकि उसका मन कहीं और भटक रहा था
अपनी जगह से वो बाहर के घास वाले हिस्से को देख सकता था, जहाँ हॉस्टल के कुत्ते सुस्ताए हुए थे
उसके पीछे ह्यूमैनिटीज़ ब्लॉक था

उसे उम्मीद नहीं थी कि वो दिखेगी
लेकिन हर दिन उसके भीतर का एक छोटा सा हिस्सा अब भी उसे ढूँढता रहता

एक हफ़्ते से ज़्यादा हो गया था उन्हें ढंग से बात किए हुए
बस कुछ छोटे-छोटे पल हुए खाना लेते वक्त एक सिर हिलाना, किसी लेक्चर में एक नज़र मिलना
वो अब किसी बीच की चीज़ बन चुकी थी
ना पूरी तरह गई हुई, ना पूरी तरह मौजूद

धीरे-धीरे स्टूडियो भरने लगा
ऋषि हमेशा की तरह देर से आया
उसके बाल भीगे हुए थे, और उसने दो चाय के कप पकड़े हुए थे, शायद ज़रूरत से ज़्यादा मीठे

"मैं शांति का तोहफ़ा लेकर आया हूँ," उसने कहा, एक कप आरव की टेबल की तरफ़ सरकाते हुए

"मैंने शांति नहीं माँगी," आरव ने कहा

"इसीलिए तो ज़रूरत है"

आरव ने कप बिना बहस के ले लिया
चाय बहुत ख़राब थी
पर कम से कम जानी-पहचानी

ऋषि उसके पास बैठ गया और अपनी गर्दन स्ट्रेच की
"वो बहुत चुप है आजकल, है ना?"

आरव ने नज़रें नहीं उठाईं
"वो हमेशा चुप ही रहती है"

"ऐसी नहीं ये कुछ और है"

आरव की पेंसिल एक पल के लिए रुक गई

"तू किसी चीज़ का इंतज़ार करता है," ऋषि ने अब थोड़ा धीमे स्वर में कहा
"जैसे वो आकर ठीक वही बात कहेगी, जिसका तू इतने वक्त से इंतज़ार कर रहा है"

आरव ने सामने खुले पन्ने की तरफ़ देखा
फिर खिड़की के बाहर

"मुझे उम्मीद नहीं है," उसने थोड़ी देर बाद कहा
"पर कभी-कभी सोचता हूँ, अगर वो कहती, तो उसकी आवाज़ कैसी लगती"

ऋषि ने तुरंत कुछ नहीं कहा
फिर पूछा, "और अगर वो कभी ना कहे?"

आरव ने कोई जवाब नहीं दिया
वो बस अपने ड्रॉइंग पर वापस लौट आया

शाम को जब वो लाइब्रेरी के पीछे वाले गलियारे से गुज़र रहा था, तो वहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं थी
ज़्यादातर छात्र अपने कमरों में थे, असाइनमेंट्स कर रहे थे या दिनभर की थकान उतार रहे थे
पूरा कैंपस कुछ धीमा लग रहा था, जैसे दिन अपने आप को समेट रहा हो

आरव स्टूडियो से लौट रहा था जब उसने उसे देखा

मीरा एक दीवार के पास खड़ी थी, फोन देखती हुई
उसके इयरबड्स गले में ढीले लटक रहे थे
कदमों की आहट सुनकर उसने नज़र उठाई

"हाय," उसने सहजता से कहा

"हाय," उसने भी कहा, चलते हुए थोड़ा धीमा हुआ

कोई असहजता नहीं थी
बस दो लोग, जिन्होंने कई चुप्पियों को एक साथ बिताया था

"दिन लंबा था?" उसने पूछा, फोन जेब में रखते हुए

"स्टूडियो में था वक्त का पता ही नहीं चला"

उसने सिर हिलाया "आर्किटेक्चर में ऐसा होता है"

"और लिटरेचर में नहीं?" उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा

उसने कंधे उचकाए "हम कम से कम मरे हुए लेखकों पर बहस कर सकते हैं और उसे गहरा चिंतन कह सकते हैं"

वो हल्के से हँस पड़ा "बिलकुल सही बात है"

वे दोनों एक पल वहीं खड़े रहे
ना अजीब, ना बोझिल
बस एक जगह पर ठहरे हुए

"तुम इन दिनों ज़्यादा चुप हो," उसने कहा
कोई इल्ज़ाम नहीं था, सिर्फ़ एक बात जो कह दी गई थी

"मैं यहीं थी," उसने जवाब दिया

"मैंने ये नहीं कहा कि तुम नहीं थी"

उसने अपने बैग की स्ट्रैप कंधे पर ठीक की
"थोड़ा बहुत चल रहा था बस"

"जैसे?"

"असाइनमेंट्स सना के प्रोजेक्ट में मदद कर रही हूँ ज़िंदगी"

उसने सिर हिलाया "बिलकुल, समझ आता है"

एक छोटा सा सन्नाटा उनके बीच आया

"खाने की तरफ़ जा रहे हो?" उसने पूछा

"हाँ तुम?"

"थोड़ी देर में"

"ठीक है"

दोनों वहीं रुके रहे
किसी ने तुरंत जाने की कोशिश नहीं की

"ठीक है," आरव ने आखिर में कहा
"कल मिलते हैं?"

"हाँ," उसने कहा "मिलते हैं"

वो मुड़कर चलने लगा

मीरा ने उसे जाते नहीं देखा

उसने बस अपने हेडफ़ोन फिर से लगाए और अपनी म्यूज़िक लिस्ट में स्क्रॉल करने लगी

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